धूपछांव विचारों का मंच – हिन्दी दिवस
अभिव्यक्ति का परचम हिन्दी, संस्कृति की जननी हिन्दी, निश्चल और निराली हिन्दी, अंतर्मन की तस्वीर हिन्दी | अपनी भाषा करो अपनी भाषा पर प्यार।जिसके बिना मूक रहते तुम,रुकते सब व्यवहार।…
अभिव्यक्ति का परचम हिन्दी, संस्कृति की जननी हिन्दी, निश्चल और निराली हिन्दी, अंतर्मन की तस्वीर हिन्दी | अपनी भाषा करो अपनी भाषा पर प्यार।जिसके बिना मूक रहते तुम,रुकते सब व्यवहार।…
प्रकृति को किसी एक तरह से परिभाषित नहीं किया जा सकता। पानी की गहराई और ऊंचाई, पशु-पक्षियों में विचित्रता, गन्ने में मिठास और नीम में कड़वापन यह सबकुछ प्रकृति के…
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं न मन्त्रो न तीर्थं न वेदो न यज्ञः |अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् || अर्थात: न मैं…
हमारी प्रकृति अद्भुत है, अनोखी है अनमोल है जो हमें मोहित कर देती है | प्रकृति के बीच मन शांत और ताज़ा महसूस करता है। चिड़ियों के कलरव, कल कल…
कभी-कभी बातचीत से ही कई कठिनाइयों के हल निकल आते हैं। आपस में चर्चा करके, एक दूसरे के अनुभव से प्रेरणा लेकर चुनौतियों पर विजयी प्राप्त किया जा सकता है।…