अभिव्यक्ति का परचम हिन्दी, संस्कृति की जननी हिन्दी, निश्चल और निराली हिन्दी, अंतर्मन की तस्वीर हिन्दी |
अपनी भाषा
करो अपनी भाषा पर प्यार।
जिसके बिना मूक रहते तुम,रुकते सब व्यवहार।
जिसमें पुत्र पिता कहता है, पत्नी प्राणाधार,
और प्रकट करते हैं जिसमें तुम निज निखिल विचार।
बढ़ाओ बस उसका विस्तार।
करो अपनी भाषा पर प्यार।
भाषा बिना व्यर्थ ही जाता ईश्वरीय भी ज्ञान,
सब दोनों से बहुत बढ़ा है ईश्वर का यह दान।
असंख्य हैं इसके उपकार।
करो अपनी भाषा पर प्यार।
यही पूर्वजों का देती है तुमको ज्ञान -प्रसाद,
और तुम्हारा भी भविष्य को देगी शुभ-संवाद।
बनाओ इसे गले का हार।
करो अपनी भाषा पर प्यार।
—-मैथिलीशरण गुप्त
धूपछांव विचारों का मंच:
हमारी भाषा एक ऐसी कड़ी है जो हमें हमारे पूर्वजों से, हमारे संस्कारों से, हमारी जड़ों से जोड़े रखती है। अपनी भाषा में पिरोए हुवे मोती जैसे एक एक अक्षर मानों बस दिल को छू जाते हैं क्योंकि वह बातें सीधे दिल से लिखी या बोली जाती है। अपनी भाषा को जाग्रत रखना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण ही नहीं बल्कि अपना कर्तव्य भी है। बस इसी प्रयास को पूर्ण करने के लिए हम धूप छांव के माध्यम से आप सबके लिए एक प्रस्ताव लेकर आए हैं।
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