समय को बाँधता मैं हूँ,
अहंकार का नाश मैं हूँ,
सृष्टि की रचना मैं हूँ,
जीवन का संचार मैं हूँ।
काल का काल मैं हूँ,
शून्य का सार मैं हूँ,
निराकार मैं हूँ,
अनंत में मैं हूँ।
तुम्हारे अंतर्मन में मैं हूँ,
तुम्हारे हर प्रयत्नों में मैं हूँ,
हां, मैं शिव हूँ,
मुझे ढूंढो, मुझे समझो,
मैं ही तुम हूँ, तुम ही मैं हूँ।
हाँ, मैं शिव हूँ।
हाँ, यह सत्य तो है कि हम शिव को अनेकों जगह ढूँढ़ते हैं, परन्तु शिव हम में हैं, शिव अनन्त हैं। शिव को समझना जितना मुश्किल है उतना ही आसान भी। शिव की आस्था में जितने दिन लीन हो उतना ही कम है पर महाशिवरात्रि पर भक्तों का समर्पण अपने चरम सीमा पर होता है।
शिवरात्रि एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है जो हमारी आत्मशुद्धि के लिए अति आवश्यक है। शिव जी की साधना और पूजा अर्चना, उपवास व ध्यान की भिन्न भिन्न प्रक्रिया न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त करने का एक तरीका भी है।
इस पावन अवसर पर, हम अपनी नकारात्मक सोच और कुछ आदतों का त्याग कर, अपनी क्षमताओं को पहचान कर, जीवन में सुख और समृद्धि पा सकते हैं।
आइए जानें : शिव कौन हैं? शिव का अर्थ क्या है?
शिव जितने भिन्न हैं उतने ही प्रकृति में समाए हुए हैं, आइए समझते हैं कि शिव और प्रकृति का क्या सम्बन्ध है।
प्रकृति से जुड़ने से कैसे शिव की आराधना होगी
पृथ्वी संतरणात् संतु नः पुन्या पुन्येन वातः।
पुन्येन अध्युष्ट पुन्या पृथ्वी पुन्येन संतु नः॥
हमें अपने पुण्य कार्यों से पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए जो हमारी अपनी भलाई और आने वाली पीढ़ियों की भलाई के लिए पृथ्वी, जल और वायु के संरक्षण के लिए आवश्यक है।
हमारे जीवन में प्रकृति का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जंगल, पहाड़, नदियां, और आकाश प्रकृति के ये तत्व हमें शांति, संतुलन और ऊर्जा प्रदान करते हैं। लेकिन, आजकल की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में हम प्रकृति से दूर हो गए हैं। हम अपनी आँखों को कंक्रीट के जंगलों में और मस्तिष्क को इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उलझा लेते हैं।
महाशिवरात्रि पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम प्रकृति से जुड़ें और अपने समय का कुछ हिस्सा प्रकृति के बीच बिताएं, ताजगी महसूस करें और अपनी आत्मा को शुद्ध करने के लिए प्राकृतिक ऊर्जा को स्वीकार करें। प्रकृति की अनगिनत रचनाओं से सीखें और उसे बचाने के लिए पृथक प्रयास करें। इससे हमारे शरीर और मन को शांति प्राप्त होगी।
शांत मन से कैसे शिव में लीन होना
उदेति सविता ताम्र, ताम्र एवास्तऐति च। सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता ॥
जैसे सूर्य का रंग उदय या अस्त होते समय एक समान होता है ठीक वैसे ही हमारा व्यवहार भी सभी परिस्थितियों में समान होना चाहिए।
विचलित मन, जो हर समय अव्यवस्थित रहता है, हमारी मानसिक शांति को भंग करता है। यह एक वास्तविकता की तस्वीर है जिससे हम सब बड़ी आसानी से मुँह मोड़ लेते हैं। हमारी चिंताएँ, विचारों का असंतुलन और बिना उद्देश्य के भटकने वाली मानसिकता हमें आत्मज्ञान और ध्यान से दूर कर देती है।
शिवरात्रि पर ध्यान और साधना से मन को शांत रखना जरूरी है। इस दिन हमें अपने मन को शांत और स्थिर रखने का अभ्यास करना चाहिए। एक व्यवस्थित मन सही निर्णयों को लेने में सक्षम होता है इसीलिए हमें अपने विचारों को नियंत्रण में लाने और चित्त को शांत करने की कोशिश करनी चाहिए।
क्रोध का त्याग इस महाशिवरात्रि पर
नाकार्यमस्ति क्रुद्धस्य नवाच्यं विद्यते क्वचित्॥
मनुष्य जब क्रोध में होता है तो उसको क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं बोलना चाहिए इसका विवेक नहीं रहता।
क्रोध एक ऐसी नकारात्मक भावना है जो न केवल हमारे शरीर और मस्तिष्क को नुकसान पहुँचाती है, बल्कि हमारे रिश्तों को भी तोड़ देती है। जब हम क्रोधित होते हैं, तो हम अपने विवेक और समझ खो देते हैं और ऐसा कुछ कर जाते हैं जिसका पछतावा हमें जीवन भर होता है। इसका एक ही उपाय है, क्रोध से दूरी बनाये रखना। क्रोध को त्यागना एक बड़ी चुनौती हो सकती है, लेकिन शिवरात्रि का यह अवसर हमें इसे नियंत्रण में रखने का आदर्श अवसर देता है।
हमारे भीतर क्रोध को कम करने के लिए, हमें खुद से और दूसरों से क्षमा मांगने की आवश्यकता है। इस दिन को अपने क्रोध को छोड़ने और आत्मा में शांति के लिए ध्यान करने का दिन बनाएं। शिव के ध्यान से यह संभव हो सकता है कि हम अपने भीतर की घृणा, कष्ट और गुस्से को सुलझा सकें।
कैसे अपनी सोच से शिव की आराधना करें
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतो:
सभी दिशाओं से नेक विचार ही मेरे पास आएं
नकारात्मक सोच हमें हर अच्छे अवसर से दूर कर देती है। आप सोच रहे होंगे यह तो कोई नयी बात नहीं है परन्तु, यह साधारण सा बदलाव ही सारे गुणों से सर्वोपरि है। नकारात्मक सोच ही हमारी आत्म-संवेदनशीलता को प्रभावित करती है और हम अपने जीवन के अच्छे पहलुओं को नजरअंदाज कर देते हैं। शिवरात्रि का दिन इस नकारात्मक सोच को छोड़ने का सर्वोत्तम समय है।
हमें अपनी मानसिकता में सकारात्मकता लानी चाहिए और यह समझना चाहिए कि भगवान शिव हमें सही रास्ते पर चलने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। हमें हर कठिनाई को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए। शिवरात्रि पर हम अपने विचारों को सकारात्मक दिशा में बदलने के लिए कदम बढ़ा सकते हैं।
अहंकार से दूरी लाए आपको शिव के समीप
नास्त्यहंकार समः शत्रुः
अहंकार के समान कोई शत्रु नहीं है। अहंकार व्यक्ति को आत्मसमर्पण और स्वीकृति के मार्ग से हटा देता है और उसे अपनी गलतियों को मानने में विफल करता है।
आडंबर और अहंकार व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार से दूर ले जाते हैं। शिवरात्रि का यह पवित्र दिन हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति न तो किसी दिखावे और न ही अहंकार से संबंधित होती है। भगवान शिव के प्रति वास्तविक श्रद्धा और प्रेम में कोई आडंबर नहीं होता।
इस दिन हमें अपने अहंकार और दिखावे को छोड़ना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि जो दिखावा हम दूसरों के सामने करते हैं, वह हमें आंतरिक शांति से दूर करता है। शिवरात्रि का दिन हमें अपनी आत्मा को शुद्ध करने का समय प्रदान करता है।
शिवरात्रि पर इन पांच दोषों का त्याग और उनके हल को अपनाने से हम अपने मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को सुधार सकते हैं, और यह हमारे जीवन को एक नई दिशा भी दे सकते हैं। जब हम अपनी गलत आदतों और नकारात्मकता से मुक्ति प्राप्त करते हैं, तो हम आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर चलने में सक्षम होते हैं। शिवरात्रि का यह पर्व हमें अपनी गलतियों को सुधारने और अपने जीवन को शुद्ध करने का अद्भुत अवसर प्रदान करता है।
आइए, हम सब मिलकर इस शिवरात्रि को अपनी आत्मा की शुद्धि और मानसिक शांति के लिए समर्पित करें।