संतुष्ट मन सबसे बड़ा वरदान है जिसमें जीवन की सारी खुशियाँ छुपी हैं।
किस्से जो परिवर्तन की लहर आपके अंदर उत्पन्न करें वे बहुत खास होते हैं। हम उन्हें कभी भूल नहीं पाते और वे हमारे प्रेरणा का स्त्रोत बन जाते हैं। ऐसा ही एक किस्सा आज आपके साथ साझा करना चाहती हूँ ।
एक बार मैं स्कूल के बाहर अपनी गाड़ी में बैठी बैठी मेरी बेटी के आने का इंतजार कर रही थी। मैं थोड़ा जल्दी पहुँच गई थी, रास्ते में और भी काम थे जो जल्दी खत्म हो गए थे, ट्रैफिक भी रोज से कम मिला था। अभी काफी समय बचा था स्कूल की छुट्टी होने में। गाड़ियों की लंबी कतारों ने सभी पार्किंग की जगहों को रोक रखा था। मुझे दूर-दूर तक कहीं भी गाड़ी पार्क करने की जगह नहीं दिखाई दे रही थी। क्योंकि समय अभी काफी बाकी था तो मैंने अपनी गाड़ी स्कूल से थोड़ी दूर एक पेड़ की छाया में लगा दी और पुस्तक पढ़ने लगी।
मेरे बिल्कुल सामने एक बड़ी सी सफ़ेद गाड़ी आकर रुकी। वो भी पार्किंग की जगह टटोल रही थी। इतने में एक कार की जगह खाली हुई और उस सफ़ेद गाडी वाले ने उस खाली जगह पर कार पार्क कर दी। मैं मन ही मन यह सोचने लगी कि, मेरी तो किस्मत ही खराब है। मैं यहाँ इतनी देर से इंतजार कर रही हूँ, लेकिन मुझे पार्किंग की जगह नहीं मिली और देखो उस गाड़ी वाले की किस्मत आते ही पार्किंग तैयार। कब मिलेगा जो मुझे चाहिए? ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है? जिधर देखो सबके पास आज सबकुछ है लेकिन मेरे पास तो………….तेज हॉर्न की आवाज मुझे अपने ख्यालों से वापस ले आई।
मैने देखा कि उस सफ़ेद कार से दो बच्चे बड़े हँसते खेलते अपनी माँ के साथ उतरे। उनकी माँ ने उन्हें सड़क पार करने से मना किया और उनका हाथ थाम कर एक तरफ खड़ी हो गई। ड्राइविंग सीट से धीरे से एक व्यक्ति उतरे, मुझे ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था क्योंकि वे दूसरी तरफ थे।
मुस्कुराते हुए जब वे व्यक्ति सड़क पार करने के लिए सामने आए तो मैं चकित रह गई। वे एक पैर से लाचार थे, बैसाखी की सहायता से वे चल पा रहे थे। बड़े ही प्यार से बच्चों ने अपनी माँ और पिता के साथ सड़क पार की और स्कूल के गेट से अंदर चले गए।
यह दृश्य मानो मेरे मन को छू गया। उनको देख मुझे बहुत शर्म आने लगी, अपने आप पर बहुत क्रोध भी आया। अभी थोड़ी देर पहले मैं अपनी किस्मत को कोस रही थी पर आज मुझे पता चल गया कि मैं कितनी गलत थी। शारीरिक रूप से अक्षम हो कर भी वे व्यक्ति कितने संतुष्ट दिखाई दे रहे थे। इतनी विपरीत परिस्थिति में भी उनके चेहरे पर तेज था और आंखों में चमक थी। मुझे यह सीख मिल गई की चाहे कुछ भी हो अपनी उम्मीदों और हौसले को बुलंद रखना चाहिए।
बस, उस दिन के बाद से मैं ईश्वर से संतुष्ट मन और दृढ़ आत्मविश्वास की मनोकामना करने लगी।
क्या आपके साथ भी कोई ऐसी घटना हुई है जिसने आपके नजरिये को बदल दिया हो? अगर हाँ, तो हमसे जरूर शेयर करें।
यहाँ आप पढ़ सकते हैं कि सकारात्मक सोच का जीवन में कितना महत्व है।
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This is a very captivating short story. Really an unsatisfied mind is at the core of most if not all problems one faces. If the mind is calm and satisfied, that is the key to real happiness.
It’s the same thing as complaining for not having good shoes when there are people who don’t have legs! Small instances like this make us realise how blessed we are, isn’t it?
I have seen and lived with one such person in my life…my mother; she is so much satisfied with all that she has and never demands. It’s true we complain so much in life without looking at what we already have.
Actually we demand much and thus we can not be satisfied with what we have. This makes us unhappy. Nice short story indeed.
Yes, we should be grateful for the things we have and should always try to spread happiness in every way possible. Contentment is a one of the biggest factor for happiness. So content people spread more happiness.
I love how you have jotted down this beautiful experience of yours for your readers to learn from! We all really need to be thankful for what all we are gifted with instead of adopting an attitude of complaining about little things 👏👌🙏
सकारात्मक सोच का जीवन में कितना महत्व है। i wish all understand this, and we would be able to live a happy life
we have become whinners and cribbers without realizing we are actually blessed
बहुत सुंदर रचना! बड़ी ही रोचक घटना है। मेरे दादाजी कहा करते है अगर तुम्हारे पास बंगला,गाड़ी,पैसा सब है और आप संतुष्ट नहीं है तो आप दुखी है। एवम् यदि आपके पास ज्यादा पैसा नहीं है और रोटी कपड़ा मकान की किसी भी तरह व्यवस्था है, जिस से आप संतुष्ट है तो फिर दुनिया मैं आपसे खुश इंसान कोई नही!
एक चीज़ जो मैंने ज़िन्दगी और कर्मा से सीखी है वो है जितना है उतने में खुश रहना | मेरे पिता के मृत्यु पर जब मैंने पिंड दान किया तहत तब एक बात समझ आ गयी थी की हम अपने साथ सिक्का तो दूर की बात है एक छोटी सी सुई भी नहीं ले जा सकते |
I really loved reading this story. I think everyone is running to get more and more. No one is satisfied with what they have.
That’s such a beautiful short story. I really loved it and agree with it. It’s true we complain a lot but we should also not forget there are people who don’t have things which we have. So we should try to be happy with what we have.
Nice inspirational one and helps to go on in life happily