“सुबह सुबह अदरक वाली चाय का स्वाद ही कुछ और है”, किशोर के हाथों में चाय का प्याला आते ही होटों पर जैसे मुस्कुराहट छा गई।
“हर सुबह बस यही बोलते हो”, मालती अपनी चाय के प्याले को ट्रे से उठाने के लिए बढ़ी।
“सच ही तो है, जब तक अदरक वाली चाय न मिले दिन शुरू नहीं होता”, किशोर को जैसे सारे सुख मिल गए।
“जरा बाबूजी से सीखो वे तो अपने दोस्तों के साथ सैर पर एक घंटे पहले ही चले गए और उससे पहले योग भी करते हैं, और आपकी सुबह अब हो रही है”, मालती चाय की चुस्कियां लेते हुए रसोईघर की ओर यूं नज़र मारी जैसे उसकी एक झलक से रुका हुआ काम आगे बढ़ जाएगा।
अब जाकर रोटी बना दूंगी और फिर बाबूजी के लिए चाय, दोपहर के लिए दही जमाना और…,वह आगे के काम अपने मन में सोच ही रही थी कि किशोर की आवाज़ से चौंक उठी। “तुम मुझे कहती हो सैर करने के लिए खुद क्यों नहीं रसोईघर का मोह त्याग के चलती हो मेरे साथ सैर पर। मुझे अकेले कहां अच्छा लगता है सेर करना”, किशोर ने आज जवाब सोच रखा था।
“वाह जी वाह..मेरा बहाना ले रहे हो…आप अपनी सुबह की मीठी नींद क्यों नहीं त्याग देते और अगर मैं सैर पर चली तो गुड्डी का टिफिन कौन बनाएगा।”
दरअसल मालती जल्दी से सारा काम निपटा कर अपने लिए समय निकालती और पेंटिंग करती। उसका शौक कब लोगों को इतना पसंद आने लगा की अब उसे बहुत सारे ऑर्डर आने लगे।
गुड्डी भागते हुए आई और अपने दादा जी के लिए पूछने लगी, तो पता चला वे अभी तक सैर से नहीं आए हैं। उसकी स्कूल बस का टाइम हो रहा था, अपना टिफिन बैग में रखते हुए थोड़ी थोड़ी परेशानी सी थी। तभी उसने अपने दादा की आने की आहट सुनाई दी।झट से उनके पास गई और अपना हाथ आगे कर दिया और दादाजी ने जेब से गेंदे का फूल उसके हाथ में थमा दिया।
“दादा की लाडली”, किशोर और मालती एक साथ बोल पड़े और सबकी हंसी छूट गई।
गुड्डी हर रोज़ एक फूल अपनी स्कूल की सहायक, शीला आंटी के लिए ले जाया करती थी। गुड्डी को शीला आंटी से एक अनोखा नाता लगता था। उसने शीला आंटी की आँखों में दुःख को भाँप लिया था, आखिर वह अपने दादा जी से सभी को समान भाव से देखने की बातें सुना करती थी।
जब गुड्डी ने देखा कि सभी बच्चे अपनी टीचर को तो कई प्रकार के तोहफे देते लेकिन शीला आंटी जो सबके लिए कितना काम करती है उन्हें कभी कोई कुछ नहीं देता था। उसने सोचा क्यों न मैं रोज़ उन्हें फूल दूँ तो उन्हें कितना अच्छा लगेगा। बस, तभी से गुड्डी की रोज़ बिना भूले अपनी आंटी को सुप्रभात कह कर फूल देने की शुरुवात हुई।
एक लघु कथा जो आपको सोचने पर मजबूर कर दे – सबसे बड़ी भूख।
कौन किस मोह से बंधा था ये जान पाना मुश्किल था किशोर की नींद का भाव या मालती की पेंटिंग का, दादाजी के सैर या गुड्डी का दादाजी से और अपने टीचर से। सब किसी ना किसी मोह के धागे से बंधे हुए थे।
हर सुबह की तरह यह सुबह भी बिना किसी निष्कर्ष के समाप्त हुई।
एक दिन जब मालती के टेस्ट में शुगर निकली तो डॉक्टर ने कह दिया सुबह सैर करने से तबीयत में सुधार आएगा। और उसकी शाम दादाजी के पैर में मोच आने से उन्हें आराम करने को कहा। सब यह सोच रहे थे कि अब दिन कैसे चलेंगे।
दादाजी सुबह की सैर के साथ साथ अपने दोस्तों को याद करेंगे, तो किशोर को अपनी नींद त्याग कर सुबह मालती के संग सैर पर जाना पड़ता था। वहां गुड्डी परेशान थी कि अब कौन रोज रोज उसके लिए फूल लाएगा, क्योंकि यह एक छोटा सा राज था उसके और दादाजी के बीच।
अब घर के सभी सदस्यों को अपने-अपने मोह को त्याग एक नई दिनचर्या को अपनाना था। सभी के मन में असमंजस बना हुआ था नई पहल के लिए।
एक दो दिन तो सबके बस निकल ही रहे थे, फिर दादाजी ने देखा इसका तोड़ तो निकलना पड़ेगा, क्योंकि मोह के बिना तो कोई भी सुखी नहीं लग रहा था।
दादाजी ने दोस्तों को घर पर बुलाना चालू कर दिया। किशोर ने अपनी और बाबूजी की चाय बनानी शुरू कर दी और साथ ही साथ गुड्डी के टिफिन बनाने का जिम्मा भी ले लिया।
दादाजी के दोस्त घर आ जाते फिर वो मिल कर पीछे आंगन में प्राणायाम करते और गप्पे मारते। मालती अब बड़ी तसल्ली से सैर पर जाती और उसे अपनी पेंटिंग के लिए नई नई प्रेरणा मिलती। लौटते हुए वो भगवान के लिए जो पुष्प लाती उसमें से गुड्डी एक फूल ले जाती स्कूल अपनी दोस्त के लिए।
सभी अपने मोह से जुड़ भी गए और अपनी बरसों की आदतों को त्याग भी दिया। तो क्या यह कहना सही होगा कि मोह और त्याग समय से बदल जाते हैं क्योंकि सबको अंत में खुश रहना ही जीवन का मूल मंत्र है।
हर मनुष्य जीवन में न जाने कितने मोह से बंधा हुआ होता है, जैसा की आपने अभी अभी इस कहानी में देखा। लेकिन परिस्थियों के अनुसार अपने अपने मोह का त्याग कर एक नए दृष्टिकोण से जीवन को जीना ही सबसे बड़ा सुख और खुशी का कारण होता है। हर कठिनाई का निवारण हम मैं ही है, और इसमें पूरे परिवार का साथ भी जरूरी है। कभी कभी अपने मोह से बाहर निकल कर हम देखें तो जीवन कितना सुंदर, सरल और सुलझा हुआ दिखाई देगा।
यह ब्लॉग पोस्ट स्पीक ईजी ३.० के लिए लिखा गया है| इसे दीपिका सिंह (www.gleefulblogger.com) और रुचि वर्मा (www.wigglingpen.com) ने होस्ट किया है।
This is so true. We get connected to so many routines and habits and then we have to change. This doesn’t mean that our love vanishes. It just means we learn to love in another way, find a way to keep the love alive. Your story really tells us how we can always keep that love alive.
Maine jab yeh kahani padhna shuru kiya tab hi jaake itna sukoon mil rahi thi kyun ki yeh kahani ek sadharan si ghar ki khubsurat kahaniyon ki mel bandhan hai. Mujhe sadharan tarike se jiti huyi jivan ki ek chavi dekhne mein bohat hi shanti milti hai. Kitni khubsurti se aap logon ne iss kahani ki ek ek pallu jode hai aur ek ek moh ke dhago ko kitni sundar bhavnao ke sath buni hai. Ant mein yeh jo baat apne kahi hai iss pankti ke saath: कभी कभी अपने मोह से बाहर निकल कर हम देखें तो जीवन कितना सुंदर, सरल और सुलझा हुआ दिखाई देगा। Yeh main hamesha yaad rakhungi. Dher sara pyar aap ke Hindi blog ke liye.
आपकी यह कथा एक अद्वितीय प्रकार से मोह और त्याग की महत्वपूर्ण बात को प्रकट करती है। आपने सुंदरता से बताया कि मोह और त्याग दो आदर्श परिप्रेक्ष्यों के मध्य एक संतुलन का प्रतीक हो सकते हैं। आपकी कथा ने हमें यह बताया है कि इंसान की जिन आदतों और मोहों से वह जुड़ा होता है, वे उसकी पहचान बन सकती हैं और उसके जीवन की दिशा को निर्धारित कर सकती हैं।
आपके शब्दों से हमें सिखने को मिलता है कि किस प्रकार एक छोटी सी प्रेरणा और दिनचर्या के बदलाव के माध्यम से हम अपने जीवन को सुंदर और प्रासंगिक बना सकते हैं। आपने दिखाया कि समय के साथ यह अनुभव और समझ हमें व्यक्तिगत उत्थान की दिशा में ले जाते हैं, जो कि सच्चे और खुशहाल जीवन की ओर प्रकट होती है।
So true… I always believe only if a person comes out of his or her comfort zone, they will witness a better learning and can see themselves moving towards growth.
Growth is possible only when one steps out of his or her comfort zone. You have weaved a beautiful story and have highlighted one needs to find his love or passion in life to make life more beautiful.
Another beautiful gem from your blog, moh hai hi aisi cheez. But, yes, purani aadaton ko chod nayi cheezon ko apnane mein ek ajeeb sa maza hai. Love the story, thank you for participating in SpeakEasy.
Wow! Such beautiful write up in Hindi and dhaage is a perfect metaphor as we are indeed connected to so many things in our lives. Thanks for sharing this story in Hindi.
sweetly written, and agree that one has to change to learn, to grow, to see a different face of life. its easy to fall into a routine and stay in it, without realizing… this is a good reminder to revisit our own routines and habits too.
I am one such person who finds it difficult to accept change and I genuinely dread change as I feel I am moving away from my comfort zone and chattering a new territory and skeptical of how it will turn out to be. But ya now with time I have realised that change is the only thing constant and I have accepted that changes will come and I have to deal with it.
I loved it..There is always a little hesitation before every change but this is the only constant factor of life.
Change is the only constant. Once we stick to it’s true meaning, many things clear up! I loved this ❣️
I am truly a lover of Hindi and the moment I opened the blog to read I knew it was all worth opening. It’s so true we all have some moh ke dhage that doesn’t leave us. It’s difficult to leave them and have some new things starting in our lives. But at times its worth leaving these threads of attachment and routine to do somethiing good.