सुबह की सुहावनी धूप में कीर्ति चाय की चुस्कियाँ ले रही थी। यह समय उसके लिए बहुमूल्य था, वकालत की दौड़-भाग को भूल कुछ क्षण अपने लिए चुरा लिया करती थी।
कीर्ति को विष्णु की गुहार सुनाई दी। “आज नंदा का बेटा इस समय यहाँ कैसे?”, चाय का प्याला हाथ में लिए आँगन की और अपने कदम जल्दी जल्दी बढ़ाने लगी। कीर्ति के आँगन की ओर बढ़ते कदमों को रश्मी ने अचानक रोका, “माँ, आज यह कुर्ता जरूर ऑर्डर कर देना, आज सेल का आखिरी दिन है। मुझे कॉलेज जाने के लिए देरी हो रही है, मैं चलती हूँ”। “रश्मी की फरमाइशें कब खत्म होंगी?”, सोचते हुए कीर्ति आंगन में पहुँची।
नंदा उसके यहाँ काम करती थी, समय की पाबंद, सफ़ाई में अव्वल, यही खूबियों वाली सहायक चाहिए थी कीर्ति को। ६ साल का विष्णु काँपते स्वर में रट लगाकर अपनी माँ से ज़िद कर रहा था, “अम्मा, मैं आज स्कूल जाऊँगा, वहाँ आज मटर पुलाव मिलेगा”। “क्यों नहीं, मैं स्वयं तुम्हें छोड़ आऊँगी, तुम्हारा स्कूल नहीं छूटेगा”, भारी मन से नंदा ने उत्तर दिया।
“नंदा, लगता है तुम्हारे बेटे को पढ़ाई में बहुत रुचि है”, कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा। उसने विष्णु को जैसे ही थपथपाया, वह समझ गयी यह तपन गर्मी की नहीं, बुख़ार की है। “विष्णु की तबीयत ठीक नहीं है, इसे तो तेज बुख़ार है”, कीर्ति ने नंदा और विष्णु को घर के भीतर आने को कहा।
नंदा तुरंत विष्णु को गोद में लेकर भीतर आ गयी। कीर्ति ने जल्द ही गरम दूध और नाश्ते की प्लेट नंदा को थमाई और दवाई ढूँढ़ने लगी, “विष्णु को इतना तेज बुख़ार है और तुम उसे स्कूल भेजना चाहती हो ?“
विष्णु ने पराठे को २ भागों में बाँटा और अपनी माँ के साथ नाश्ता करने में मग्न हो गया। ५-६ निवालों के बाद नंदा की आँखों से आँसू छलकने लगे और बड़े ही भारी मन से कीर्ति की ओर देखा। कीर्ति समझ गयी की बात गम्भीर है, उसने विष्णु को दवाई पिलायी और सोफ़े पर लेटा दिया और खुद नंदा के पास जा बैठी।
नंदा ने रोते हुए बताया, “परसों मेरा पति मुझ बेड़ौल को छोड़, २० वर्षीय सुंदर लड़की के साथ सारे रुपए लेकर भाग गया, घर में २ दिन से खाना नहीं बना है। विष्णु स्कूल जाकर ही अपना पेट भरता है”।
बिना कुछ आगे पूछे कीर्ति ने नंदा को २००० का नोट थमा दिया, “तुम चिंता मत करो, विष्णु का ध्यान रखो”।
कीर्ति को समझ नहीं आया आख़िर किसकी भूख सबसे बड़ी है? “क्या मेरी समय की भूख़, या रश्मि की इच्छाओं की भूख या फिर उस नन्हे विष्णु के पेट की भूख, या नंदा के पति की पैसों की भूख”।
कीर्ति अपने चाय के आधे भरे प्याले को एक तरफ रख, कोर्ट के लिए रवाना हो गई।
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The story is thought-provoking. It left me pondering upon life’s mundane desires. Very nicely written.
A short story with a regular scenario of house help and a woman that has so much to it. We have come across such incidences so many times in our lives. How we deal with it is our humanity in the end.
I loved the style of narration. It has given a food for thought for the readers as to what isnit that we all want. Whose needs are more relevant? Loved the message
This story might be fiction but tells the fact of one part of society where we all have that Bhook which we are looking for to fulfil. Lovely story.
A nice story which provides food for thought. I loved the narrative style and the message it imparts.
बहुत ख़ूब. आपकी कहानी आज के समाज की तस्वीर दिखती है. कीर्ति के सवाल पढ़ने वाले के मन में भी सवाल पैदा`करते हैं.
Such a beautiful story, this is a sad reality of mankind, we are never contended with what we have. Its always – bas thoda aur. You have raised a very valid question – I think in the end it all boils down to zaroorat.
What a story around hunger. You have talked about almost all types of hunger and it’s the hunger which thrives and drives the human race and unfortunately these different types of hungers and decreased humanity in this world.
Wow, this is such a beautifully written piece. Hindi main padhna mujhe bahut pasand hai aur itni dil chune wali writing. maja aagaya padhke.