‘सरला दाल में तड़का वैसे ही लगाना जैसे तुमने पिछले हफ़्ते लगाया था’, भीतर कमरे से आवाज़ आयी।
जी भाभी, वैसे ही लगा दूँगी। सरला भी किचन से ही बोल पड़ी।
सरला जब सारा खाना काँच के बर्तनों में डाल चुकी थी और किचन को सही से कर रही थी आचानक देखती है कि भाभी उसके लिए पानी का ग्लास भर रही थी।
अरे सरला आज फिर तुमने इस खिड़की को चमका दिया, तुम्हारे रहते मैं बड़ी निश्चित हूँ।
सरला के चेहरे पर थकान को छुपाती हुई उसकी हल्की मुस्कुराहट, गोलाकार चेहरे पर बड़ी – बड़ी आंखें, गहरे काले घेरों से टिमटिमाती हुई हमेशा अपने काम को पूर्णता से करने की संतुष्टि की छाप थी।
अरे भाभी ! आप क्यूँ अपना काम छोड़ आयी, मैं ले लेती। ‘अभी मेरा ब्रेक है और तुम जो इतना सारा काम कर देती हो और अपना ख़याल बिलकुल नहीं रखती। तुमसे कहा है गर्मी बहुत है पानी या शर्बत बीच बीच में पी लिया करो, पर तुम्हारा अपना ही हिसाब है पूरा काम करने पर ही पीती हो’, मनीषा बोली।
सरला ने मुस्करते हुए ग्लास लिया और पानी पी लिया।
‘सरला, याद है ना तुम्हें शनिवार को आदि का जनमदिन है, वैसे तो बहुत सी चीज़ें बाहर से आएँगी पर तुम्हारे हाथ की पाव भाजी सब बच्चों को पसंद है, तो वो बनानी है बस।‘
भाभी आप चिंता मत कीजिए, मुझे याद है और मैं बना दूँगी।
सरला ने अपने दुपट्टे की गाँठ खोलते हुए अपना बटुआ उठाया और चल दी अपने घर की ओर।
रास्ते में सोच रही थी, मुझे यह घर सही मिल गया सब परिवार को मेरे हाथ का खाना भी पसंद है और मेरे काम की इज़्ज़त भी करते है। खाना बनाना मेरा शौक़ है और उसके महीने के दस हज़ार से घर में मदद भी हो जाती है। बंटी को गोभी बहुत पसंद आज यही बना दूँगी, यह सोचके आगे खड़े सब्ज़ी के ठेले पे पहुँची।
“कैसे हो श्याम काका, आज तो सब्ज़ियाँ बहुत ही ताज़ा लग रही है।“
उम्र से थोड़े ज़्यादा बूढ़े दिखने वाले श्याम काका उठे अपनी जगह से और अपने ठेले के पास आकार खड़े हो गए। “अरे बिटिया यह तेरे देखने का नज़रिया, थोड़ी देर पहले आती तो सुनती तुम्हारी पड़ोसी विमला क्या कह रही थी इन सब्ज़ियों को देख कर।“
“कोई बात नहीं काका, वो परेशान होगी।“ यह कहकर सरला सब्ज़ियाँ चुन ने लगी, एक गोभी का फूल, टमाटर, हरी मिर्च एक लहसुन और थोड़ा धनिया पाता एक टोकरी में डाल श्याम काका को थमा दिया तोलने के लिए। श्याम काका हर बार की तरह तोल से ज़्यादा ही डाल देते सरला की थैली में। यह उनका प्यार था या मानो उनके काम की प्रशंसा से खुश वो यह कर देते।
जैसे ही घर में घुसी तो देखती है की बंटी के पापा दाल उबाल चुके थे और बंटी उनसे लगातार कह रहा था, आप दाल में तड़का मत लगाना वो माँ लगा देगी।
जब उन दोनो ने सरला को देखा तो खुश हो गए, बंटी भागता हुआ आया और बोला, “ माँ कह ना बाबा को कि तड़का तू लगा देगी।“
हाँ ! मैं ही लगा दूँगी।
मनोज अक्सर थोड़ा रसोई का काम कर दिया करते थे अपने फ़ैक्टरी से लौटने के बाद। उसे पता है, सरला को थोड़ी मदद हो जाएगी और खाना सबको समय से मिल जाएगा। सरला के लिए ऐसा पति मिलना मानो भाग्य की बात थी जहाँ आस पड़ोस में लोग या तो औरतों को काम पे जाने नहीं देते और जाने देते तो घर के काम में बिलकुल हाथ नहीं बटाते।
“अच्छा माँ सुन आज स्कूल में क्या हुआ, उत्साही बंटी माँ के पास गैस स्टोव के पास बैठ गया।“
अब अपनी माँ को भी सुना दे तेरी दिन चर्या, मनोज एक पुराना अँगोछा लेके घर के बाहर रखी अपनी साइकिल को पोछने लगा।
आँठ साल का बंटी अपनी स्कूल की बात बताने लगा और खाने से आती ख़ुशबू को आँखें बंद करके आनंद लेने लगा।
“माँ, आज टीचर ने ‘हामीद का पाठ’ , पढ़ाया जहाँ मेरे ही उम्र का बच्चा मेले में जाता है और सारी चीजों का सूंघ कर ही पेट भर लेता है पर वहाँ के दुकानदार उसे ख़ुशबू चोर कहते है और अंत में अपनी दादी के लिए चिमटा खरदीता है। टीचर ने कहा हमें भी अपने घरवालों का ध्यान रखना चाहिए और उनकी जरूतों को अपने से पहले रखना चाहिए।
अरे वाह ! यह बड़ी दिलचस्प कहानी है और तुझे पाठ भी रटा हुआ है, अब सूंघता ही रहेगा या खाना भी खाएगा; चल अपने बाबा को भी आवाज़ लगा दे।
सबने तड़के वाली डाल और गोबी की सब्ज़ी के साथ गरम गरम रोटियाँ खायी।
माँ आज वहाँ क्या बनाकर आयी। “आज वहाँ भी तड़के वाली दाल, बैगन, चावल और रोटी” मुस्कुराके सरला बोली। क्यूँ पूछ रहा है तू?
माँ उनका घर भी ख़ुशबू से महकता होगा ना जैसे ही तू तड़का लगती होगी” , बंटी ने गोभी को उठाते हुआ मुँह में डालते हुए पूछा।
“नहीं! कभी कभी तो किसी को पता ही नहीं चलता और सारा खाना बन जाता है, सारी ख़ुशबू तो, ख़ुशबू चोर ले जाता है ना, सरला ने ठिठोली में कहा।
“ख़ुशबू चोर वहाँ?” बंटी परेशान होते हुए बोला।
क्या आप भी जानना चाहते हैं कि आगे क्या हुआ ? तो पढ़िए कहानी का अगला भाग – पकड़ा गया खुशबू चोर ख़ुशबू !
Wow loved the way you have present this story. yes, there are so many amazing maids in India who work hard and serve other’ family with delicious food with their hard work. looking forward to next part of post. I am sure its going to be an interesting one.
This is such an interesting story with bunty even I am curious who is khusboo chor at her madam’s place. Keep sharing.
Wah wah… Bunty jaisa khushbu chor doosra bhi hai? Mere ghar ka khushbu chor to meri chimney hai. 😉 Wahan ki kaun hai? Mujhe bhi jaanna hai!
Would love to know what happened next.. While reading I thought of different ending but now more curious to know your thought process.
This is such an incredible way of story narration. We are all curious to know more about khushboo chor
The tadka is so important in our cooking. If not done well, the dal loses its favour. My Hindi is poor, but I read and didn’t understand who the khushboo chor is.
I always loved your post.its such a beautiful post with beautiful narration.i always learn from your post ..and learn new things to make my posts interesting.keep writing
lovely story and enjoyed the way that you have imagined and written this. definitely pulls the reader right in 🙂
I love the way you presented the story. The way your story gripped me now even I am intrigued to know who is the khushboo chor?
This is such a cute story. Khane ki khushbu jab ghar mein failti hai tab achanak bhook bhi lagne lagti hai. As someone who loves to cook, I understand this so well.
What a fabulous story yaar. I want to know that who is khushbu chor now? Looking forward to the next part